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वो भी क्या दिन थे.......

यादें बचपन की 📺 📷 
बचपन वाला 15 अगस्त।
रैली, पीटी-परेड, इनाम, मिठाई और प्रेस की हुई नई चमकती ड्रेस और फोटो खिंचवाने वाला 15 अगस्त. हाथों में केसरिया मिठाई लिए, हाथ सहित ड्रेस पर रंग बिरंगे रिबन बांधे हुए सफेद बादलों के साए में, हरी जमीन पर फहराते थे अपना प्यारा तिरंगा।

हल्की-हल्की बूंदाबादी. हवा में खुनक. बच्चे के सिर में कंघी फिरा रही मां. बच्चा कहता है, मां जल्दी कपड़े पहनाओ. देखो सब चले गए. प्रभात फेरी निकल जाएगी. फिर मैं अकेला पीछे-पीछे भागता रहूंगा. इतनी जोर से गांव का स्कूल कभी याद नहीं आता, जितना 15 अगस्त को आता है. कुछ ही तो ऐसे दिन होते थे जब खुद से मन करता था, स्कूल जाने का. खुशी इसलिए भी ज्यादा होती थी कि आज स्कूल जा तो रहे हैं मगर न होमवर्क चेक होगा न हीं मैथ्स वाले सर से डाँट खानी पड़ेगी। मिठाई खाने को मिलेगी वो अलग खुशी।
खैर,स्कूल पहुँच कर लाइन में लग जाते थे और पूरे ताकत के साथ जोर-जोर से 'जन-गण-मन' गाना शुरू करते फिर वन्दे-मातरम्' और उसके बाद चार-पाँच देश-भक्ति वाले गीत। हाँ ये और बात थी कि उन गीतों का मतलब समझ में बिलकुल भी नहीं आता

सुबह जल्दी से स्कूल पहुंचकर गुरुजी को माइक, स्पीकर और गाने लगाने और ध्वज में फूल बांधने मालाएं बनवाने में हेल्प करते थे. फिर शुरू हो जाते थे सुबह-सुबह, ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ ऐ मेरे वतन के लोगो जैसे देशभक्ति गाने.

मिठाई के पैकेट बनाने के लिए सारे लड़के तैयार रहते थे. वो भी जो हर काम में इधर-उधर बहाना बनाकर गायब हो जाते थे. पर ये काम मिलता गुरुजी के कुछ लाडले बच्चों को. जिनको अंदर नहीं घुसने दिया गया उनको लगता था कि ये अंदर सारी मिठाई खा जाएंगे. वो बाहर से बार-बार झांककर देख जाते थे. या फिर गुरुजी से बार-बार बोलते, हम भी पैकेट बनवाने में हेल्प करें क्या.

स्कूल के गेट से शुरू होती थी प्रभात फेरी. नारे लगाते हुए पूरे गांव का चक्कर लगा आते थे. अपने घर के आगे से गुजरते समय एक दम तनकर चलते थे. और थोड़ा जोर से नारे लगाने लगते. भारत माता की जय हो, दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे टाइप के.

प्रभात फेरी के बाद होता था झंडारोहण. उस वक्त जब राष्ट्रगान बजता था तो लगता था कि जो सबसे बड़ी तोप है, वो यही है. रोंगटे खड़े हो जाते थे. उसके बाद होती पीटी परेड. गुरुजी की बहुत डांट पड़ती थी. आज किसी ने गड़बड़ कर दी ना तो मिठाई का पैकेट नहीं मिलेगा. पर फिर भी गड़बड़ तो हो ही जाती थी. ना हाथ मिलते थे, ना पैर. पीटी में आधे लड़कों के सिर ऊपर होते तो आधों के नीचे. आधे दाएं घूमते आधे बाएं. गांव के लोग देखकर खूब हंसते ।

बहुत सारी प्रतियोगिताएं भी होती थी. दौड़, चम्मच दौड़, बोरा दौड़, जलेबी खाने वाली, सुई डोरा, आटे में से सिक्का खाने वाली दौड़. बोरा दौड़ में आधे बच्चे बीच में ही गिर जाते थे. चम्मच वाली में सबके कंचे गिर जाते थे. आटे में से सिक्का खाने वाली दौड़ में सब आटे में मुंह डालकर भागते थे तो उनका आटे से सना मुुंह देखकर हंस-हंस कर पेट दर्द हो जाता था. सुई डोरा में जीतने के लिए कुछ लड़कियां कई दिन पहले से प्रैक्टिस शुरू कर देती थी.

इस दिन का सबसे रंगीन हिस्सा थे सांस्कृतिक प्रोग्राम. अलग-अलग वेशभूषा, डांस, नाटक, गीत. कई बार इतने लोग देखकर दिमाग खाली हो जाता था. गीत गाने मंच पर चढ़ते थे और एक लाइन बोल के चुप हो जाते थे. कुछ याद ही नहीं आता. फिर गुरुजी बोलते कोई बात नहीं बेटा शाबास, बैठ जाओ. दूसरे दिन क्लास में खूब डांट पड़ती थी. सबसे अच्छा सीन होता था. जब कुछ बच्चे तुतलाती आवाज में लोक-गीत सुनाते थे.
फिर शुरू हो जाते भाषण. दस दिन पहले ही अच्छे से लिखवा लिया जाता बड़े भाई या चाचा से. पहले अंग्रेजी में होता और फिर हिंदी में. कई दिन पहले से रटना शुरू करते थे, फिर भी भूल जाते थे. उसके बाद प्रोग्राम के चीफ गेस्ट भाषण देते. बच्चों देश का भविष्य हो, देश का नाम रोशन करोगे टाइप के डायलाॅग वाले भाषण. पर बच्चों को इससे क्या मतलब, उन्हें तो  इंतजार रहता कब इनके भाषण खत्म हों और मिठाई के पैकेट मिलें. कुछ बच्चे पीटी वाले गुरुजी से छिपकर गांव के दूसरे लड़कों के साथ बीच में तालियां बजाते थे. चीफ गेस्ट 1100 रुपए स्कूल को देने की घोषणा के साथ  भाषण खत्म करते.

फिर शुरू होता था इनाम वितरण. सारी प्रतियोगिताओं में जीतने वालों को सम्मानित किया जाता. कुछ को तीन-तीन, चार-चार इनाम मिल जाते थे. उनके भाई-बहन हाथों में उनके साथ इनाम पकड़े घूमते रहते. सबसे मजे लेते हुए पूछते तुम्हें भी कुछ मिला कि नहीं. इनाम में मिलते थे प्लेट, पेन, कापी और गिलास.

और आखिर में आता था वो मौका जिसका सुबह से इंतजार रहता था. मिठाई बंटनी शुरू होती थी. मम्मी की, छोटे भाई की, बुआ की ना जाने किस-किस की मिठाई मांगते थे बच्चे. फिर पैकेट लेकर भागते हरे-भरे खेत की ओर जल्दी से फोटो खिंचवाने. जल्दी से इसलिए कि घर भी तो पहुंचना होता था. 12 बजे डीडी नेशनल पर कर्मा, बॉर्डर, तिरंगा, क्रांतिवीर जेसी देशभक्ति फिल्म आती थी ना. क्यों याद आया न बचपन वाला 15 अगस्त?😊🇮🇳🙏

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